Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 115
________________ थी। बाहुबलिके पास सन्देश भेजा गया तो उन्होंने उत्तर दिया'महासम्राट पिता श्री ऋषभदेव महाराजने मुझे यह राज्य दिया था। मैं अपने बड़े भाईका सम्मान करता हूँ, पर वे इस राज्यपर कुदृष्टि न डालें।' भरतको तो चक्रवर्ती बनना था। वे अपनी दिग्विजयको अपूर्ण नहीं रहने देना चाहते थे। रणभेरी बजने लगी। चतुर मंत्रियोंने सम्मति दी'यह तो भाई-भाईकी लड़ाई है सम्राट् ! फ़िज़लके नर-संहारसे क्या फ़ायदा ? आप दोनों ही दृष्टि-युद्ध, जल-युद्ध और मल्लयुद्ध करके हार-जीतका फैसला कर लें।' __दोनोंने यह बात मान ली। दृष्टि-युद्ध और जल-युद्ध में बाहबलि जीत गये। फिर दोनों भाई अखाड़े में उतरे । जब इसमें भी जीतनेके भरतको लक्षण न दिखे तो उन्होंने अपने पितासे प्राप्त अमोव अस्त्र 'चक्ररत्न' का अपने छोटे भाईपर प्रयोग कर दिया। लेकिन 'चक्ररत्न' कुटुम्बियोंपर नहीं चला करता, इसलिए वह बाहबलिके पास पहुँचकर लौट आया। बाहुबलिने अपनी प्रचण्ड भुजाओंसे भरतको अपने सरसे भी ऊपर उठा लिया और ज़मीनपर पटकने ही वाले थे कि एकाएक ज्ञानका उदय हुआ । वैराग्य हो गया । बाहुबलिने धीरेसे भरतको सामने खड़ा कर दिया और बोले-'भाई, क्षमा करना। इस राज्य-वैभवके मदसे अन्धा होकर मैं बड़े भाईका अपमान कर बैठा।' यह कहते हुए बाहुबलि मल्लशालासे निकलकर सीधे वनको चल दिये और घोर तपमें लीन हो गये । लीला एक बार यूनानके बादशाह बीमार पड़े। कोई इलाज माफ़िक़ नहीं आ रहा था। अन्तमें हकीमोंने कहा कि अमुक लक्षणों वाले आदमीका कलेजा मिले तो कुछ उम्मीद हो सकती है। सन्त-विनोद १०५

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