Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 119
________________ ज़मींदारको दुःख हुआ । उसने अपने लाये हुए भोजन के स्वीकार न किये जानेका कारण पूछा । गुरु नानकदेवने एक हाथमें लुहारकी रोटियों में से बचा हुआ एक टुकड़ा लिया और दबाया तो उससे दूधकी बूँदें टपकीं । फिर ज़मींदारकी लाई हुई मिठाईका एक टुकड़ा दबाया तो उससे खून की बूँदें निकलीं । शुद्ध अन्न है। उससे निर्मलता बढ़ेगी । उनका हक मारकर लाया गया है । इस अन्नसे पापवृत्तियाँ प्रबल होंगी ।' गुरु नानक ने बताया- 'लुहार ने मेहनत करके कमाया है । इसलिए वह तुम्हारा अन्न दूसरोंको सताकर, इसलिए यह अपवित्र रक्तान्न है । नामदेव 'अरे नामू ! तेरी धोती में खून कैसे लग रहा है ?" 'यह तो माँ, मैंने कुल्हाड़ीसे पैरको छील कर देखा था ।' चमड़ी छिली हुई देख कर माँ बोली- 'नामू ! तू बड़ा मूर्ख । कोई इस तरह घाव पक जाय या सड़ जाय तो पैर कटवाने अपने पैर को छीलता होगा ! तककी नौबत आ जाती है ।' 'तव पेड़ को भी कुल्हाड़ीसे चोट लगती होगी । मैं पलासके पेड़ की छाल काटकर लाया था न ? पैरकी भी छाल उतार कर देखूं जानने के लिए मैंने ऐसा किया माँ ! ' । उस दिन तेरे कहने से मैने सोचा कि अपने पलासके पेड़को कैसा लगा होगा यह नामदेवकी माँ रो पड़ी । बोली- 'बेटा नामू ! मालूम होता है तू एक दिन महान् साधु होगा । पेड़ों और दूसरे जीवोंमे भी जान है । चोट लगने पर जैसे हमें दुःख होता है वैसे ही उन्हें भी होता है ।' बड़ा होनेपर वही नामू प्रसिद्ध भक्त नामदेव हुए । सन्त-विनोद १०६

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