Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 130
________________ एक दाना अलग रखते जाते । जब सब दानोंको अलग कर लेते तो समझते कि 'एक सेर भजन हुआ !' इसी तरह कभी दो सेर कभी तीन सेर भजन करते । कभी पांच सेर भो ! बहुमत एक पेड़पर एक उल्लू बैठा था। अचानक एक हंस भी उड़ता हुआ आकर उस वृक्षपर बैठ गया। हंस-'उफ़ ! कैसी गर्मी है ! सूरज आज बड़े प्रचण्ड रूपसे चमक रहा है।' उल्ल-'सूरज ? सूरज क्या चीज़ है ? कहाँ है सूरज ? इस वक़्त गर्मी है यह तो ठीक है, पर वह तो अँधेरा बढ़ जाने पर हो जाती है।' हंसने समझानेकी कोशिश की-'सूरज आसमानमें है । उसकी रोशनी दुनियामें फैलती है, उसीसे गर्मी भी फैलती है।' उल्लू हँसा-'तुमने रोशनी नामको एक और चीज़ बतलाई ! तुम्हे किसने बहका दिया है ? तुम यह क्या अवस्तुओंकी चर्चा कर रहे हो !' हंसने समझानेकी बहुतेरी कोशिश की मगर बेकार । आखिर उल्लू बोला-'अच्छा चलो उस वटवृक्ष तक, वहाँ मेरे सैकड़ों अक़लमन्द जातिभाई रहते हैं। उनसे फ़ैसला करा लो।' हंसने उल्लूकी बात मान ली। दोनों उल्लुओंके समुदायमें पहुँचे, उस उल्लूने कहा-'यह हंस कहता है कि आसमानमें इस वक़्त सूरज चमक रहा है । उसकी रोशनी दुनियामें फैलती है, उसीसे गर्मी भी फैलती है।' तमाम उल्लू हंस पड़े-'क्या वाहियात बात है ! भाई, न सूरज कोई चीज़ है न रोशनी कोई वस्तु । इस बेवकूफ़ हंसके साथ तुम तो बेवकूफ़ न बनो !' १२० सन्त-विनोद

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