Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 128
________________ मन्त्री-'यह आपसे कुछ अजं कर रहा है।' राजा-क्या कह रहा है ?' मन्त्री-'यह कहता है कि मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए । मैंने स्वर्ग जानेकी आपसे कब इच्छा प्रकट की थी ? मैं तो घास खाकर ही सन्तुष्ट हैं, स्वर्गके दिव्य भोग मुझे नहीं चाहिएँ। अगर यज्ञमें बलि दिये जाने पर प्राणी स्वर्ग चला जाता है तो तुम अपने बाप, माँ, स्त्री, लड़के, लड़कियोंकी या खुद अपनी बलि देकर स्वर्ग क्यों नहीं चले जाते ?' राजा बड़ा शर्मिन्दा हुआ। उसने बकरेको छोड़ दिया और यज्ञ बन्द करा दिया। ईश-प्राप्ति एक साधकने अपने सद्गुरुसे पूछा-'प्रभु-प्राप्तिका उपाय क्या है भगवन् ! मुझे साधना करते-करते इतने दिन हो गये मगर सफलता नहीं मिली।' गुरु उस वक़्त चुप रह गये। लेकिन एक दिन नदीमें स्नान करते वक़्त उन्होंने उसे पानीमें धर दबाया। कुछ देर बाद वह छटपटाकर बाहर निकला । गुरुने पूछा-'पानीसे निकलनेकी कैसी आतुरता थी तुम्हारे दिलमें ? जब भवजलसे बाहर निकलकर प्रभुसे मिलनेके लिए यूँ ही व्याकुल हो उठोगे तभी प्रभु-प्राप्ति हो जायेगी।' चोर वृन्दावनके सन्त ग्वारिया बाबा एक दिन अपनी मस्तीमें पड़े हुए थे कि दो चोर आ गये । पूछने लगे-'तुम कौन हो ?' _ 'तुम कौन हो?' ११० सन्त-विनोद

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