Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ ग़नीमत सन्त उसमान हैरी किसी गलीसे जा रहे थे । एक मकानकी छतसे किसीने बिना देखे थाली भर राख फेंक दी। वह हैरीके सिरपर गिरी । झाड़-झूड़कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोले- 'दयामय प्रभो ! तुझे धन्यवाद ! एक आदमीने यह देखकर पूछा- 'इसमें ईश्वरको धन्यवाद देनेकी क्या बात है ? बोले- 'मैं तो आगमें जलाये जाने लायक़ हूँ। लेकिन उस रहीम और करीमने सिर्फ राखसे ही निपटा दिया !' साधु एक साधुसे हज़रत इब्राहीमने पूछा-'सच्चे साधुका लक्षण क्या है ?' साधुने जवाब दिया-'मिला तो खा लिया, न मिला तो सन्तोष कर लिया।' हज़रत इब्राहीम हँसे-'यह तो हर कुत्ता करता है।' साधुने कहा- 'तब आप ही साधुका लक्षण बतायें।' इब्राहीम बोले-'मिला तो बाँटकर खाया और न मिला तो खुश हुआ कि दयामय भगवान्ने कृपा करके उसे तपस्याका सुअवसर प्रदान किया।' मुझे देखो! हाजी मुहम्मद एक मुसलमान सन्त थे। वे साठ बार हज कर आये थे और पांचों वक़्तकी नमाज़ पढ़ा करते थे। एक दिन उन्होंने सपना देखा-. सन्त-विनोद ११३

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153