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जरूरतके वक़्त काम आवें । चलते वक़्त मांने उपदेश दिया- ' बेटा जा, तुझे ईश्वरको सौंपा। देख, सदा सच बोलना और ईश्वर को कभी मत भूलना ।'
हज़रत गौसुल एक क़ाफ़लेके साथ हो लिये । रास्ते में डाकुओंके एक गिरोहने क़ाफ़लेको लूट लिया । एक डाकू उनके पास आकर बोला — 'ओ लड़के, तेरे पास कुछ है कि नहीं ? बता !' इन्होंने जवाब दिया- 'मेरे पास चालीस अशफ़ियाँ हैं ।' डाकूने पूछा - 'कहाँ हैं ?' जवाब मिला'कुर्ते में बग़ल के नीचे सिली हुई हैं ।'
डाकू इसे मज़ाक़ समझकर चल दिया। थोड़ी देर में दूसरा डाकू आया। उसे भी वही जवाब मिला | डाकू उन्हें अपने सरदारके पास ले गया, और सारा हाल कह सुनाया । सरदार ने कहा – 'अच्छा, इसकी अशर्फ़ियाँ निकालो।' बताई हुई जगहसे ठीक चालीस चमकती हुई अशफ़ियाँ निकलीं ।
सरदार हैरत में आकर बोला- 'लड़के, तू अजब तरहका आदमी है । तूने चोरोंको भी अपना माल बता दिया !' हज़रतने सिर झुकाकर कहा'मेरी माँने चलते वक़्त मुझे नसीहत दी थी कि सदा सच बोलना और ईश्वरको कभी मत भूलना । मैंने अपनी माताकी आज्ञानुसार काम किया है, और कुछ नहीं ।
डाकुओं के सरदारके मन पर इसका बड़ा असर पड़ा। वह बड़ा पछताया । उसने सारा माल वापस कर दिया, और लूटमार छोड़कर भले रास्ते लगा ।
विद्युच्चर
विद्युच्चर एक राजकुमार था, लेकिन बुरी सुहबतके असर से वह डाकू बन गया । उसके गिरोहमें ५०० डाकू थे ! पिताने दुःखी होकर उसे
सन्त-विनोद
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