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अन्तमें सन्तको क्षमाकी विजय हुई। पठानको अपने कामपर शर्म आई। वह एकनाथजीके पैरोंपर गिर पड़ा-'आप खुदाके सच्चे बन्दे हैं । मुझे माफ़ कर दें । आइन्दा मैं कभी किसीको तकलीफ़ नहीं दूंगा।' ___सन्त बोले-'इसमें माफ़ी माँगनेकी क्या बात है । आपकी कृपासे आज मुझे एक सौ आठ बार गोदावरीके स्नानका पुण्य प्राप्त हुआ।'
संकीर्ण दृष्टि एक राजकुमारका धनुष खो गया । सैनिकोंने कहा- हुजूर, हुक्म फ़र्माइए । हमलोग ढूंढकर लायें ?' राजकुमारने कहा--'नहीं भाई, क्या ज़रूरत है ! वह इसी देशके किसी शख्सके पास होगा। देशको चीज़ आखिर देशके ही किसी आदमीके पास है न !'
इस बातको जब महात्मा कन्फ़्यूशसने सुना तो कहा-'राजकुमारकी दष्टि संकीर्ण है, नहीं तो वे कहते-चलो, क्या हुआ, एक आदमीकी चीज़ किसी आदमीके ही पास है न !'
-चीनी काव्य-संग्रह
गर्व-खर्व
जब परमेश्वरने देखा कि इन्द्रधनुषको अपने रंगका गर्व हो गया है तो उसने एक मोर पंख उसकी ओर उड़ाया। उसे देखकर इन्द्रधनुषने जो सर नीचा किया सो आजतक नीचा है !
-मराठी मासिक 'वसन्त'
सन्त-विनोद