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दयाभाव एक बार हजरत अली नमाज़ पढ़ रहे थे । एकाएक एक दुष्टने आकर उनपर तलवारसे वार करना चाहा, कि मसजिदके लोगोंने यह देखकर उसे पकड़कर अलीके सामने पेश किया। उसी वक़्त एक आदमी अलीके लिए शरबतका गिलास लेकर आया। उन्होंने बँधे हुए अपराधीकी ओर करुण दृष्टिसे देखते हुए कहा-'भाई, यह शरबत इस ग़रीबको दे दो, दौड़-धूपसे बेचारा बहुत थक गया होगा !'
साधना शिष्य- रोज़ाना ज़िन्दगीमें आत्म-साक्षात्कारकी साधना आप कैसे करते हैं ?
गुरु-'मुझे जब भूख लगती है तब खाता हूँ, और जब थकता हूँ तब आराम करता हूँ । बस यही मेरी साधना है।'
शिष्य-'यह तो सभी करते हैं।'
गुरु-'नहीं, सभी ऐसा नहीं करते-सौमें एक भी शायद ही करता हो।'
शिष्य- 'कैसे ? साफ़ समझाइए।'
गुरु-'जब लोग खाने बैठते हैं, तो सिर्फ हाथ-मुँहसे खाते हैं । मनसे नहीं-मन कहीं और भटकता रहता है। सोते हैं तो शरीरसे सोते हैं, मनसे नहीं ! शरीर और मनके बीचकी यह दरार ही तो साधनका विक्षेप है । मैं यह दरार नहीं पड़ने देता।'
सन्त ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरके संन्यासी पिताने गुरुकी आज्ञासे गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया। वे संन्यासीके पुत्र थे । वे अपने भाइयों निवृत्तिनाथ और सोपान
सन्त-विनोद