Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 97
________________ संगीन जुर्म न्यूयार्क के एक मशहूर मेयर ला गाडियाको —— जो अपनी सहृदयता और सुप्रबन्धके लिए बहुत प्रसिद्ध हैं -- पुलिस अदालतके मुक़दमोंसे बड़ी दिलचस्पी थी; क्योंकि वहाँ उन्हें नगरकी वास्तविक स्थितिका पता मिलता था । इसीलिए वे अकसर पुलिसके मुक़दमोंकी अध्यक्षता किया करते थे । एक दिन पुलिसने एक चोरपर मुक़दमा चलाया कि उसने एक रोटी चुराई है | मुलज़िमने अपने बचाव में सिर्फ़ एक ही जुमला कहा -'मेरा परिवार भूखा था, इसलिए मैं चोरी करनेपर मजबूर था ।' मेयरने फ़ैसला दिया- 'चूँकि मुलज़िमने चोरी की है, इसलिए मैं उसपर दस डालर जुर्माना करता हूँ ।' और फ़ौरन अपनी जेब से दस डालर निकालकर मुलजिमको दे दिये- 'यह रहा तुम्हारा जुरमाना ।' फिर उन्होंने उत्तप्त भावसे हाज़िरीनसे कहा - 'लेकिन साथ ही अदालत में हाज़िर हर शख्स पर मैं आधा डालर जुर्माना करता हूँ; क्योंकि वह एक ऐसे समाज में रहने का संगीन जुर्म करता है जिसमें एक बेकस इन्सानको रोटी चोरी करनी पड़ती है । ' - 'हाफ़मैन' के संस्मरणोंसे मतिमन्द एक कर्मकाण्डी ब्राह्मण किसी सेठके यहाँ गीतापाठके लिए जा रहा था । रास्ते में एक नदी पड़ती थी, उसके किनारे एक घड़ियाल बैठा मिला । बोला— 'महाराज, पहले मुझे गीता सुनाइए, फिर सेठजीको ।' यह कहते हुए उसने भेंट स्वरूप मोतियोंका एक हार ब्राह्मण देवताके सामने रख दिया । फिर क्या था ! ब्राह्मण गीता सुनाने लगा । यह क्रम रोज़ चलने लगा । सन्त-विनोद ८७

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