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खुद नम्रतासे नीचे बैठा। नौकरको यह देखकर ताज्जुब हुआ । मंसूरने सादिक़से पूछा-'बोलिए आपकी क्या इच्छा है ?' सादिक़ बोले-'मैं बस यही चाहता हूँ कि अब फिर मुझे बुलाकर मेरी तपस्यामें विघ्न न डालना !' ___ मंसूरने उनकी यह मांग मंजूर की और उन्हें इज़्ज़तके साथ विदा किया । उनको विदा करके मंसूर थर-थर काँपने लगा और बेहोश होकर गिर पड़ा। जब मंसूरको होश आया तो वज़ीरने पूछा-'तुम्हें यह कैसे हुआ ?' मंसूर बोला-'जब सादिक़ मेरे कमरेके दरवाजेके आगे आकर खड़े हुए तब उनके साथ मैंने एक भयानक साँप देखा। वह साँप 'अपना फन उठाकर मुझसे कहने लगा- 'अगर तूने सादिक़का कुछ किया तो मैं तुझे काट खाऊँगा।' साँपको देखकर मैं डरके मारे सारी सीटी-पटाख भूल गया। मैंने उनसे माफ़ी माँगी और बेहोश होकर जा पड़ा।'
एक दिन सादिक़ निहायत उम्दा मलमलका कुरता पहनकर जा रहे थे। किसोने कहा-'आप सरीखे महान् साधुको ऐसा बारीक़ और कोमल कपड़ा शोभा नहीं देता।' सादिक़ने उस आदमीका हाथ पकड़ कर अपने कुरतेकी बाँहके अन्दर डाला। कुरतेके नीचेके मोटे चुभोले कपड़े पर उसका हाथ फिराते हुए सादिक़ने कहा-'मैं एक कपड़ा लोगोंको दिखलाने के लिए पहनता हूँ और दूसरा खुदाके वास्ते पहनता हूँ।'
मजहबी झगड़ा सुल्तान हैदरअली बिलकुल अपढ़ था। धर्मके नामपर होनेवाले झगड़ोंसे उसे सख्त चिढ़ थी।
एक बार शिया-सुन्नियोंमें झगड़ा हो गया। लड़ाई तक नौबत पहुँची। बात हैदरअलीके कानोंमें पड़ी। उसने दोनों पक्षोंको बुलाकर पूछासन्त-विनोद