________________
तब एकाएक वह मेरी तरफ़ मुखातिब होकर पूछने लगा-'अब आप बताइए, क्या आपको भी नसीहत और नेकसलाहने खदेड़कर यहाँ पहुँचा दिया ?'
'ना, मैं तो दर्शक हूँ।'
वह बोला-'अच्छा, तो आप उन लोगोंमें-से हैं जो इस दीवालके दूसरी तरफ़ वाले पागलखाने में रहते हैं।'
कपड़े एक रोज़ सुरूपता और कुरूपता किसी समन्दरके किनारे मिलीं। और एक दूसरीसे बोलीं-'आओ समन्दरमें नहायें ।'
उन्होंने कपड़े उतार दिये और पानीमें तैरने लगीं। कुछ देर बाद कुरूपता दि.नारेपर लौट आई और सुरूपताके कपड़े पहनकर चलती बनी। __सुरूपता भी समन्दरसे निकली। देखा कि उसके कपड़े गायब हैं। मगर वह शर्मके मारे नंगी तो रह नहीं सकती थी, इसलिए उसने कुरूपताके कपड़े पहने और चल दी।
अब आजतक लोग कुरूपताको सुरूपता और सुरूपताको कुरूपता समझते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे हैं जिन्होंने सुरूपताके चेहरेको देखा है और वे उसे उसके बदले हुए कपड़ोंमें भी जान जाते हैं। और कुछ ऐसे भी हैं जो कुरूपताके चहरेको जानते हैं और उसके कपड़ोंमें भी उसे देख लेते हैं।
ज्ञान और अर्ध-ज्ञान एक नदीके किनारे तैरते हुए लढेपर चार मेंढक बैठे हुए थे । एकाएक लट्ठा धारामें बह चला। मेंढक आनन्दसे मस्त हो गये। क्योंकि उन्होंने ऐसी जलयात्रा पहले कभी नहीं की थी।
सन्त-विनोद