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जव युवक लौटा तो भगिन जान-बूझकर ज़ोरसे झाड़ लगाने लगी। धूल उड़कर युवकपर आने लगी। उसने गुस्से में आकर पत्थर उठाया और भंगिनको मारने झपटा । भंगिन असावधान नहीं थी। झाड़ फेंककर दूर भाग गई । युवक जो मुंहमें आया बकता रहा ।
दुबारा स्नान करके वह महात्माके पास आया । सन्तने उससे कहा'तुम तो पशुकी तरह मारने दौड़ते हो । अभी तुम भजनके लायक नहीं।' एक वर्ष बाद आना । एक वर्ष तक नाम-जप करते रहो।'
वर्ष पूरा करके युवक फिर सन्तके सामने हाज़िर हुआ। साधुने उससे फिर स्नानकर आनेके लिए कहा। और उधर भंगिनसे बुलाकर कहा कि 'इस बार इसके लौटनेपर इस तरह झाड़ देना कि झाड़, इससे छू जाय । डरना मत । मारेगा नहीं। कुछ कहे तो चुपचाप सुन लेना।' ।
भंगिनने आज्ञाका पालन किया। युवकको गुस्सा तो बहुत आया, मगर सिर्फ कुछ कठोर वचन कहकर फिर स्नान करने चला गया।
जब वह सन्तके पास पहुँचा तो वे बोले-'अभी भी तुम भूकते हो। एक वर्ष और नाम-जप करो, तब आना।'
एक वर्ष और बिताकर युवक सन्तके पास आया। पहलेको तरह फिर स्नान करके आनेकी आज्ञा मिली। और भंगिनको आदेश दिया कि इस बार कूड़ेकी टोकरी उलट देना उसपर ।'
भंगिनके कूड़ा डालनेपर युवक न केवल शांत रहा बल्कि भंगिनके सामने ज़मीनपर मस्तक टेककर हाथ जोड़ कर बोला-'देवी ! तुम मेरी गुरु हो । तुम्हारी ही कृपासे मैं अहंकार और क्रोधको जीत सका !' ।
दुबारा स्नान करके जब युवक सन्तके पास पहुंचा तो उन्होंने उसे हृदयसे लगा लिया । बोले-'अब तुम भजनके अधिकारो हुए।'
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सन्त-विनोद