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गौतमके कानोंमें यह आवाज़ पड़ी कि उन्हें प्रकाश मिल गया। उन्होंने जान लिया कि ठीक तरह जीनेके लिए घोर तप और अति भोगको छोड़कर मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए ।
समझौता रोहिणी नदीके पानीके उपयोगपर शाक्यों और कोलियोंमें भयङ्कर झगड़ा हो गया। मारकाट और रक्तपातकी नौबत आ गई ।
बिहार करते हुए महात्मा बुद्ध उधर आ निकले। "किस वातका कलह है, महाराजो ?' 'रोहिणीके पानीका झगड़ा है, भन्ते ।' 'पानीका क्या मूल्य है, महाराजो ?' 'कुछ भी नहीं है, भन्ते ।' 'क्षत्रियोंके खूनका क्या मूल्य है, महाराजो ?'
शर्मसे लोगोंकी आँखें नीची हो गई। दोनों पक्षोंने समझौता कर लिया।
सुख
विशाखाके केश और वस्त्र भोगे हुए थे। बड़ो रंजोदा और दुखी नज़र आती थी।
'तुम्हारी इस असाधारण स्थितिसे आश्चर्य होता है !' महात्मा बुद्धने उससे कहा।
'मेरे पौत्रका देहान्त हो गया है, भन्ते । मृतके प्रति यह शोकाचरण है', विशाखा बोली।
सन्त-विनोद
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