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आनन्दका मूल्य
'स्वामीजी, मैं बहुत दुखी हूँ; मुझे आनन्दका मूलमंत्र बताइए । नहीं तो मैं अपनी ज़िन्दगीको खत्म कर दूँगी ।' न्यूयार्कको एक धनी महिलाने, जिसके एक पर एक तीन पुत्र मर गये थे, शोकार्त वाणी में स्वामी रामतीर्थसे निवेदन किया और घुटने टेक स्वामीजी के सामने बैठ गई ।
उन दिनों स्वामी रामतीर्थ अमेरिकामे अद्वैत दर्शनपर भाषण कर रहे थे । उनके भाषण और आचरण से प्रभावित अमेरिकावासी उन्हें 'मूर्तिमन्त आनन्द' और 'जीवित ईसामसीह' कहते थे ।
स्वामीजी बोले – ' राम तुम्हें आनन्दका मंत्र ज़रूर देगा, मगर उसके लिए तुम्हें माकूल क़ीमत अदा करनी होगी ।'
महिला आशान्वित होकर बोली- 'मेरे पास धन-दौलतकी कमी नहीं, आप जो फ़रमायेंगे दूंगी ।'
'रामके परमानन्दमय साम्राज्य में इस फ़ानी दौलतकी कुछ क़ीमत नहीं, राम इससे भी बड़ी क़ीमत तुमसे माँगता है !'
'स्वामीजी, आप कहिए तो, मैं हर क़ीमतपर वह आनन्द प्राप्त करना चाहती हूँ ।'
' तो फिर, रामके साम्राज्य में भी आनन्दका क्या अभाव है !' कहते हुए स्वामीजीने एक अनाथ हब्शी बालक महिलाको देते हुए कहा - 'लो, इसे पुत्रवत् पालना । यह स्वयं रामका आत्म-स्वरूप है ।'
महिला यह सुनकर काँप गई । बोली- 'स्वामीजी, यह तो बड़ा हीन काम है ! यह मैं कैसे कर सकूँगी ?"
'तो फिर आनन्दकी प्राप्ति भी तुम्हारे लिए कैसे मुमकिन हो सकती है !' स्वामीजीने सरल भावसे कहा ।
सन्त-विनोद
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