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यह कहकर गुरुजीने एक कोड़ा लिया और राजकुमारकी पीठपर सड़ाक-सड़ाक दो जड़ दिये और बोले-'जाओ वत्स,तुम्हारा कल्याण हो ।'
राजाने आचार्यसे पूछा-'अपराध क्षमा हो, मगर राजकुमारका यह ताड़न मेरी समझमे नहीं आया, गुरुदेव ।' ।
गुरु बोले-'इसे शासक बनना है । दूसरोंको दंड भी देगा। इसे मालूम होना चाहिए कि मारकी तकलीफ़ कैसी होती है।'
दया एक आदमी किसी जंगलमेंसे जा रहा था। वहाँ उसे एक हिरनी और उसका बच्चा दिखाई दिया। वह उनके पीछे पड़ा। हिरनी तो भाग गई, पर बच्चा पकड़ लिया गया। वह उसे लेकर चला। हिरनो भी आकर ममता वश रोती हई उसके पीछे-पीछे चलने लगी। आदमीको दया आ गई; उसने बच्चेको छोड़ दिया। बच्चा छटते ही छलांग मारता हुआ माँके पास पहुंचा। हिरनी मूक आशीर्वाद देती हुई खुशी-खुशी बच्चेके साथ लौट आई।
रातको उस आदमीने सपने में देखा-कोई उससे कह रहा है, 'इस दयाके लिए तुम्हें बादशाही मिलेगी ।' वह आगे चलकर ग़ज़नीका बादशाह हुआ।
रिश्तेदार एक महात्माने एक सत्संगी युवकको समझाया-'केवल परमात्मा ही अपना है । दुनियामें और कोई किसीका नहीं । माँ-बापकी सेवा और बीबी. बच्चोंका पालन-पोषण कर्तव्य समझकर करना चाहिए। मगर मोहवश उनमें आसक्ति रखना उचित नहीं।'
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सन्त-विनोद