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युवक बोला- ' परन्तु भगवन् ! मेरे माता-पिता मुझे इतना स्नेह करते हैं कि एक दिन घर न जाऊँ तो उनकी भूख-प्यास उड़ जाती है, नींद हराम हो जाती है । और मेरी पत्नी तो मेरे बग़ैर ज़िन्दा ही नहीं रह सकती ।
महात्माने उसे परीक्षा करके देखनेकी युक्ति बतलाई ।
वह घर जाकर पलंगपर चुपचाप लेट गया । प्राणवायु मस्तक में चढ़ाकर वह निश्चेष्ट हो गया । घरवाले उसे मरा समझकर रोने-पीटने लगे । लोग जमा हो गये ।
उसी समय महात्माजी आ पहुँचे । उन्होंने कहा- 'मैं इसे ज़िन्दा कर सकता हूँ । एक कटोरी पानी लाओ ।'
घर के लोग साधुके चरणोंमें लोटने लगे । पानी लेकर महात्माजीने कुछ मंत्र पढ़े और कटोरीको युवकके ऊपर घुमाकर बोले- 'अब इस पानीको कोई पी जाय । पीनेवाला मर जायेगा और युवक जी जायेगा ।'
मरे कौन ? सब एक दूसरेका मुँह देखने लगे । पड़ोसी और दोस्त वगैरह धीरे-धीरे खिसक गये ।
पिता, माता और पत्नीने लम्बे-चौड़े बहाने बना दिये । ' तो मैं पी लूँ यह पानी ?' साधुने पूछा ।
सब घरवाले बोल उठे - ' आप धन्य हैं । महात्माओंका जीवन तो परोपकार के लिए ही होता है । आप कृपा करें। आप तो मुक्तात्मा हैं । आपके लिए तो जीवन-मरण समान है ।'
युवकको अब कुछ देखना-सुनना नहीं था । उसने प्राणायाम समाप्त कर दिया । बोला- 'भगवन् ! आपके लिए पानी पीना ज़रूरी नहीं है । आपने आज मुझे सचमुच जीवन दे दिया है - प्रबुद्ध जीवन ।'
सन्त-विनोद
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