Book Title: Sanskrit Sopanam Part 03
Author(s): Surendra Gambhir
Publisher: Pitambar Publishing Company
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SA
एकदा सिंहः व्याधस्य जालेन बद्धः अभवत् । तदा सः अगर्जत् । तस्य गर्जनम् आकर्ण्य मूषकः तत आगच्छत् अवदत् च-"भोः वनराज, मा सीद । अहम् एतत् जालम् कर्तिष्यामि" इति । तदा सः मूषकः तत् जालम् अकृन्तत् । सिंहः स्वतन्त्रः अभवत् । प्रसन्नः भूत्वा सः अवदत्-"भोः मित्र मूषक, अहम् प्रसन्नः अस्मि । क्षुद्रस्य जन्तोः अपि उपयोगः भवति, एतत् अहम् अद्य अवगच्छामि" इति ।
शब्दार्थाः
मूषकः
स्म
सुप्त शरीरम् इतस्तत प्रबद्धः
चूहा (वर्तमान काल की क्रिया के पीछे लगा कर भूतकाल बनाने वाला निपात)
सोया हआयसीय = 'शरीरका
इधर-उधर = T जागा हुआ
(वक्ता के कथन के बाद प्रयुक्त)
(mouse) (past-tense-maker particle, added after present tense form) (asleep) (body) (here and there) (awake) (used to report the direct speech)
इति

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