Book Title: Sanskrit Sopanam Part 03
Author(s): Surendra Gambhir
Publisher: Pitambar Publishing Company
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भाग्यवन्तः क्षत्रियाः एव ईदृशं युद्धं विन्दन्ति । एतेन तव कीर्तिः सर्वत्र प्रसरिष्यति ।
अर्जुनः- यदि अहं कस्यचित् अपि प्राणान् हरामि, तदा पापं विन्दामि ।
कृष्णः - निष्काम भावनया यदि त्वं कार्यं करिष्यसि तदा पापं न वेदिष्यसि । निष्काम भावनायाः एषः अर्थः यत् कार्यं तु कुरु परं तस्य फलं मा इच्छ । (इति आकर्ण्य अर्जुनः युद्धाय उत्तिष्ठति )
युद्धभूमिः सम्+वद् (संवद्)
भगवत् विद्यावत्
चापः
युद्धवेला
दुर्बलता
-
धनुष्मत्
साम्प्रतम्
निश्चयवत् पूजनीय
=
||||||||||||||||||||||
=
=
=
शब्दार्थाः
युद्ध का मैदान
बातचीत करना
भगवान्
विद्वान
धनुष
युद्ध का समय कमज़ोरी धनुषधारी
= उचित
= निश्चय-युक्त
पूज्य
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PABOR
(battle-field)
(to talk to each other)
(God)
(learned person) उन
(bow)
(time of war)
(weakness)
(archer)
(proper) (determined)
Taps (respectable)

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