Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 8
________________ जी शाना, काव्यनं'थ के विचारो को मम्मिलित किया गया है इन दोनों ही विद्वानों की धार्मिक परे ग्या में किसी को किर्म' प्रकार की विभिन्नता प्रनन नहीं हो रही है । हमका आशा है' नहीं पृग भगमा है कि पाटक इसे पढ़कर लाभ उठाने का कष्ट काँगे और इस प्रगतिशीन जमाने में अपने मङ्गठन को अध्यावश्यक समझकर उसकी और अपना पूरा ध्यान देने की कृपा भी करेंगे। यदि समाज ने हमारी इम छुद्र संवा को अपनाय' ना हम भविग में पन' टमी न.7 का माहित्य लेकर आपक मेवा में उपस्थित होने का माहम बराबर करते रहेंगे। भवीय एक जैन नागरिक

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