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का दावा बड़े-बड़े धन्धर विद्वान तक नहीं कर सकते । फिर मी स्याद्वादवाद को यदि इस प्रकार से कहा जाय कि यह मानव बुद्धि के एकांगीपन को भूचित करता है. नो अनुचित नहीं कहा जायगा । जन्मांध जिम प्रकार हाथी की खोज करना है. ठीक वैमी ही हमारी इस दुनिया की भी स्थिति है । यह वर्णन यथार्थ नहीं है, ऐमा कौन कह सकता है ? अपनी ऐसी स्थिति है. ऐसा जिमको समझ में पा जावे, बहो इन जगत में सर्वज्ञ या यथार्थ ज्ञानी माना या समझा जाता है। मनुष्य का ज्ञान एक पनी है. ऐसा जो समझे वही सान है। किन्तु बम्तविक में जो मम्पूर्ण मत्य है, उमे जो कोई - निना होगा, उम परम त्मा को हम अभी तक पहिचान नहीं मक। इमी ज्ञान में-म ही अहिंमा का इद्भव हुआ है। मति के बिना अन्य किमा पर अधिकार पलाया नहीं जा सकता। अपना मन्य अपने ही लिए काफी है, अन्य को उमका माक्षायार न होने पावे. उम ममय तक धैर्य रम्बना, इमी नि शे अहिमा नि कहने में अ'या है । मार्ग दुनिया शांति की खोज करना है । म संमार मित्राहि कहकर पुकार करना है फिर भी उम शांति का मार्ग उपलब्ध नही हाना । भारत का भूमि में इमी शांति का कभा का निश्चित करने में आया है। किन्तु उम शा। के मार्ग को मंमार का स्वाकार करने में अभी काफः 'बम्ब हाने का प्राशा है। दुनि । जब नक निर्विकार नहीं हो जान', नव नक भगवान महावीर की पूर्णतावाले मार्ग को उपलब्ध करना निनांत ही कठिन है।
चाहे जो कुछ भी माना या कहा जावे, किन्तु इतना नो निश्चयपूर्वक हो कहना नथा मानना पड़ेगा कि जैन-धर्म का स्याद्वाद-दर्शन संसार के तत्वज्ञान में अपना एक बाम तथा निगला ही स्थान रम्बना है। स्याबाट का अर्थ होता है-वनु