Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 68
________________ परमात्मा-जिनकी मात्मा में शान. दर्शन, स्वभाव का पूर्ण विकास हो गया हो और संसार के चर-अचर पदार्थ स्पष्ट दीखने लगे हों, एवं जिनका शान, दर्शन, मुख, बल, अनन्त हो गया हो. वे परमात्मा है। उनमें जो शरीर के आश्रय रहकर संसारी आरमानों को पदार्थों में रहनेवाले गुणधर्मों का व्याख्यान करनेवाले जीवन्मुक्त या सकल परमात्मा भगवान् ऋषभदेव. गमचन्, हनुमान भादि इन्हीं को अरहन्त या जिन कहते हैं। और जो संसार से सम्बन्ध त्याग कर भौतिक शरीर को छोड़कर अपने सारूप में स्थिर हो लोक के अप्रभाग में जाकर स्थित हो गये हों, वे सिद्ध परमात्मा है। Printed ind published lwy Girja Shankar Miehtu (S. S. Mehra and Bros ; at the Mehtu Fine Art Press. Benar's

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