Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 35
________________ (२५) का कमाल था, यह इन्सानी कमजोरियों में बहुत हो ऊँचे थे। इनका खिताब जिन है । जिन्होंने मोहमाया को जीत लिया था, ये तीर्थर हैं। इनमें बनावट नहीं थी। २-श्री कमोमल-जैन धर्म' एक ऐमा पाचीन धर्म है, जिसकी उत्पनि तथा इनिहाम का पता लगाना बहुत हो दुर्लभ बात है। ३-जर्मनी के डॉ. जॉनम टेल-मैं अपने देश वासिमें को दिखाऊँगा कि कैसे उत्तम नियम और उचे विचार जैन. धर्म तथा जैन प्राचार्यो में है। जैन-माहित्य बौद्ध साहित्य से काफी बढ़-चढ़ कर है। ज्यों ही-ज्यों में जन-धर्म तथा उनके साहित्य को ममझता हूं, त्यांहास्यों में उनको अधिकाधिक पसन्द करना है। ४-फ्रांस के डा० ए० गिरनार-मनुष्यों की उन्नति के लिये जैन-धमका चारित्र बहुत ही लाभकारी है। यह धर्म बहुत हो ठीक, स्वतन्त्र, मादा तथा मूल्यवान है। प्रापरणों के पर्चालन धर्मो से बह एकदम ही भिन्न हैं । माथ-ही-साथ पांदधर्म की नरह नास्तिक भी नहीं है। ५ श्रीवरदाकांत मुखोपाध्याय एम० ए०-जैनधम हिंदू धम से मवथा स्वतन्त्र है। उसकी शाग्या या रूपान्तर नहीं है. पाश्वनाथ जैनधर्म के मादि प्रचारक नही थे, किन्तु इसके प्रथम प्रचारक भगवान ऋषभदेव थे। ६-स्व. डॉ. रवींद्रनाथ टैगोर-महावीर ने डिमहिम नाद में भारत में ऐसा सन्देशा फैलाया कि धम यह केवल सामाजिक

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