Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 48
________________ ( ३ ) मिवान्त पालने से ही व्यकियों का महत्व है। नवकार मन्त्र में सिद्धान्त की उपासना स्पष्ट है। पाँचों ही पड़ों में किमी भी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है, यही इमकी प्रधानता को मिद्ध करता है। उपगेन चर्चाम जैनःर्शन की विशिष्टना तथा उसके अनुरूप भाचार-विचारों का कितना अन विधान प्रादि है. जिमस जैन मार्ग का ज्ञान होता है. जिमको ममझने पर जीवमात्र स्वयमेव उमका अनमरण करने लगते हैं। नमी में जनदर्शन की महिमा पकट होनी है। शिक्षा जमान शन्य में नहीं यना है-माया का भी जान नहीं । महि-मश के लाग्य यनन में-नाश न ही चिरकाल कह ।। भर को क्या पड़ी हुई जो-से बना फिर चा किया। इससे जमत अनादि मिद्धका-मब झंगाट को दूर किया ।। सद् विश्रासन मद्धर के.-मटाचार क' प्राण कगे। इन तीनों को अपना कर के.-मद् मुम्ब पा जग-भ्रममा हंगे।। मय धर्मों का मार यह:- इमकी जांच भने कर ली म्याद वाट नय के काटे धर-फिर चाहे ना मन पर लो।।

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