Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 61
________________ ( ५१ ) इस तरह के २४ तीर्थकुर इस जमाने में और सबसे अन्तिम हुए तीर्थकुर श्रीमहावीर स्वामी हुए हैं और चतुथ युग के आरम्भ में श्राम तीर्थकु श्रोऋषभनाथजी हुए हैं । जैन संस्कृति क्या है ? यही प्रश्न अत्यन्त महत्व का है, जिसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए संस्कृति संस्कार को कहते हैं। संस्कार से हो जीवन बनना - बिगड़ता है । इसलिये भारत के सभी धर्मों ने अपने-अपने दृष्टिकोण को महं नज़र रखकर अपनी-अपनी संस्कृति सृजन परिवर्द्धन और प्रचार की रूपरेखा का जीताजागना चित्र बचा है। क्योकि प्रत्येक धर्म का प्रचार उसकी संस्कृति की महमीयता पर निर्भर है। जैन धर्म ने अपनी संस्कृति के रेखाचित्र बनाने के पूर्व तैयार किया और · बाद उसपर अपना कशा बनाया। यही कारगा है कि अनादि काल से तक हजारो विरंध हमलों को सहकर भी अपना नकशा धूमिल भी न होने दिया, क्योंकि जैन-धर्म' की भूमिका इतनी थी कि उसपर से नकशा मिटाया न जा सका । ' जैन धर्म ने आत्म-विकाम करनेवालों को हिंसा, झूठ, चांग, कुशील. परिग्रह इन पाच पापों से बचाया है, जिनसे मानव समान का व्यवहार सम्योचित नहीं रहना तथा सम्योचित गुणों का मानव मे विक्राम नहीं होने पाना । एां मद्य-शराव, मध शहद, मांस दो इन्द्रियों से ( के शरीर ) लेकर पंचेन्द्रियों के शरीर को त्याग करने की व्यवस्था नहीं है, जिससे मानव समाज में मान्त्रिक गुण का पूर्ण विकास हो सके। यही कारण है कि जैन धर्म अहिसा पृधानी धर्म आज भी संसार के धर्मो में गिना जाता है। श्री लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महोदय

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