Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 62
________________ ने यहाटा में अपने भाषण में कहा था कि "मबसे पथम अहिंसा का पाठ जैन धर्म ने ही भारत को पढ़ाया था। यहाँ तक कि बेटों पर भी जैनधर्म की अहिंसा की छाप पड़ी थी।" विश्वनिर्माण में जन-संस्कृति से क्या सहायता मिल सकती है? जैन धर्म चुकि प्रत्येक प्रात्मा के चरम मीमा के विकाम का मिट्टान्ततः मानना है। अतः अग्विन विश्व के प्रणा -त्येक आत्मा के मित्र हैं और मिद्धान्त की दृष्टि से अग्विल विश्व के प्राणा जैन-धर्म क सिद्धान्त पालन के अधिक गे हैं । अतः नब गाय हमारा बन्धुत्व का नाता वर्गक टाक बन सकता है। क्योंकि जैनम छोटे-छोटे प्रागा का नष्ट ने या दुःख पहुँचान की प्राज्ञा नहीं देना । नब हमाग विश्व में कोई शत्र नहीं रह जाता। हमारी संस्कृति हमका मध्य नागरिक बनानी है । अतः हम ममार व किमा भी प्राणी का मन ए बिना अपना व्यवहार निवाच कर माते । यह! कारण है कि "५. वष के इङ्गलिश गयकान में पुलिस या कारागाही को रिपार्ट में आप जैन मुलजिमो की संख्या नाम मात्र काही पावेंगे। क्योकि जैन लोन पाट पापो में नो मिहान्तन' बचने की जी भर चेष्टा जन्म से ही करते हैं । इमलिये उनमें ममान को अच्छे व्यापारी, धनाढ्य और दावहार कुशन प्राप्र हाने । कारागार में जाने योग्य अपराध स्वाभाविक मस्कृति में हा नहीं बन पड़ने और यही कारण है कि हम जनो में दृमी एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आज तक क डानहाम म कई यह नहीं साबन कर मकता कि जैन-धर्म के प्रचार में कभी ननवार

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