Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 56
________________ ( ४ ) भाग से लीन हाना ब्रह्मचर्य है। ये हो दश धर्म प्रास्मा के हाभाग हैं। मिन कौन है ? इसीलिये जिन बनने को जितेन्द्र।, मंयमी और परम शान्त होने की आवश्यकता है। जिन्होंने अपने ज्ञान, वैगग्य और त्याग से आत्म स्वरूप को पा लिया, वही जिन कहाने लगे और उन्होंने कर्मों का जोतने का अनुभून माग बताया, वहा जिन धर्म के नाम में प्रसिद्ध हुआ जिन किमा व्यनि विशेष का नाम नहीं . जो प्रान्मा अपना पूर्ण विकाम कर लेगा, वहीं जिन बन जायगा । जैन धर्मानुमार वही भगवान है और वहा परमात्मा है। परमात्मा बनने के पहले पाच अवस्थाए जंव : दाता। पंचपरमेष्ठी -माधु-समार क माया, ममना पार पा-मसाधन में जुट जानेवाले महापुरुष को माध करने । -उपाध्याय-मंयमी जीवन में नच्चों का मनन कानाकराना, ध्यान का अभ्याम करना-काना, मगम का प्रस पालन करना और ननका ज्ञान माधों को काना ३-प्राचार्य-मयमी हाकर माधु मंघ में मयम को मर्यादा सुरक्षित रखना. मघ के मधओं के प्राचरण में प्रापनित दोषों का निगकारण करना एवं मघ को पूर्ण मयम पालक बनाना। -अरहंत या जिन-पृण ज्ञान का विकास हो जाने से मवज्ञ-मनदर्शी अन्मा का निज स्वभाव प्रकट हा जाना है। तब ससार के पदार्थ उनके अमज्ञान में प्रतिविम्बिन हो जाते हैं और उनका प्रतिगदन अरहन्त के द्वाग सभावनया हाने लगता है, जिससे ममार के जीव तत्त्वज्ञान का रहस्य जान जाते

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