Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 45
________________ है। गोनगग शा का पानंहै, जब गग-रहित मनोवृत्ति होनी है. सभी वे वास्तविक में विवेकी पनते है। विवेकीजन ही मोक्ष-मार्ग के होते है. कारण गरेर में दरकम हाते हैं. जिम में चौगमील जाब-योनियों में प्रमाण हाना है। इमी भव-पापग में मुनि प्रान काने का प्रधान मचा मार्ग बोनगग नया का प्रापित है। यही प्रारम धम का प्राप्ति का प्रधान माग है। इस विस्थापन प्रारमा को जिन-निवीतराग-ध्यनज्ञ' मा : नाना पात्रियों में जेन जना सभी धर्म शास्त्रों में रम्य कान में पाया है। यार में कहा नाय मोरोमा का जायगा क. गगनक विजेताभी काया, धम. दमी में मकानधम ने और इसका शिंपना है: नाम का वन पनि मागणाय महामात्र जयकार है। इममें विशिष्ट प्रामपचायक पायागना। इममे किमा काitin नामा कास्थापना न जमे कि अन्य मी , सनका ६. नमक माला लागा जैन पता मम र क विशिए मिहान . माथ मय है. मायमरणशानी का मकना है। नियां । धर्म प्रमया निधनही कर मकर निगकार का मा . माकार iभा की मिडि करना है. नोकग किन्तु जैन-नशन ने अपने पधान इस नवकार महामन्त्र में परमंधर की दोनों ही अवस्थानों को मान्य देकर इमका निर्णय कर दिया है। मन्त्र में इन पदों को भाग पड़ों में स्थापन का है. अन्य नीन पर विशिष्ट अध्यात्मिक उन्नति के माधकों की नगर उनम स्थिति के परिचायक

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