Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 44
________________ ( ४ ) में जिन प्रतिमाएं विराजमान को जाती हैं. जिसमें विशुद्ध श्राशामिक नगा जगाति का यथार्य शांत भाव प्रकट होता है, माधना में यही विशिष्ट सहायक होने से प्रतिदिन वीतराग निमा का दर्शन, पूजन, गुग्णानवाद वंक जीवमात्र के लिये कल्याणप्रटी ८-प्रान्मा-परमात्मा को परिभाषा क्या है। मगीरी. मापायी, (ध. मान, माया, लोभ ) विषयी पांच इनिरे नेम विषगं क' माना जंवा को मंमी जीव करने हैं, जिनका न्म मरण होना है, ८ लक्ष जीव गोनियों में भ्रमग ना... ममारी जीवों की स्थिति है। इनमे व्यनिःि, प्रा. अनाहारी. अकपाया. अंबेदी ( निर्विकार ) श्रम विभूनि । अनन्न चतुक क भ ना ही परमात्मा कई, जान है. जाकि किंवा निम्मा धक. विट केवन तानसे यल, दान में परिणत प्राम- वर की प्रान का शानि परमात्म निक' को को परमात्मा का है यहा दोनों अवस्थाश्रम भेट न पार न कर, निगर दानी अनपा की है मनिह जनक मानः स्मरणीय म..मना पाममा निगकार अवस्थाओं क. 'यधन बिमा कमाई प र मार्ग नया : न ग्राम पवम्या यह म कार अवस्या का मूचक है। विदा पान घर को नगद में निगकार परमात्मा की उपासना की जाती है। ९-जैन-धर्म नाम इमका क्यों दिया गया ? यह धर्म विशिष्ट प्रमविद का प्रधान मिदान्न विधायक

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