Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 36
________________ दि नहीं है, किन्तु वास्तविक मस्य है । मोक्ष यह बाहरी क्रियाकांड पालन में पास नहीं हाता, धर्म तथा मनुष्य में कोई स्थायी भंट नहीं माना। कहने हुए पाश्चय होता है कि इसपकार को शिक्षा ने ममाज के हृदय में जद रूप में बैठी हुई भावना रूपी विनों को स्वग से भेट दिए और देश को वशीभून कर लिया। इसके पश्च त् बहुन ममय नक x x x x ब्राह्मणों की अभिभून हो गई थी। ___७-बोलपुर के ब्रह्मचर्याश्रम शानिनिकेतन के अधिष्ठाता नेपालचन्द्रराय-मुझको जैन तीर्थकों की शिक्षा पर अतिशय कि है। ८-जर्मन ना. हमन जेकोबी-जैन-धर्म के बार में कुछ भी लिम्बना मेरो कलम का नाकन के बाहर की बात है महत्मा गाँधी नथा लोकमान्य तिलक आदि के भी जैन धर्म के बारे में उत्कृष्ट विचार रहे हैं। उल्टी के कारण हम उन्हे सपा नहीं कर मक है। हमारे प ठ उसके लिये न । कगे।

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