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निष्फलना
मा. निप ही अविरद्ध हो, अनपम गिग। ये नान गुण जिम में प्रगट वह देव है नहिं दूमग ।। या बुद्धी श्रीकृष्ण हो. या शाम हो श्रीगम हो। बम भर-भाव बिना उमे. कर जोड़ नित्य प्रणाम हो ।। मको मद्वान मय, निष्पक्षता की दृष्टि में। निहास के पन्ने उलटिए. आप इसकी पुष्टि में ।।
हो चुका है मिटि जग में जन-धम अनादि है। कार यग्ने ता जग की न वाद-विवाद है।