Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 18
________________ (=) कष्ट किया है। उन्होंने हिंसा के कई भेट तक किए हैं। उन भेदों पर यदि ध्यानपूर्वक मनन करने का कष्ट उठाया जावे, तो बड़ी सुगमता से वे समझ में आ सकते हैं । ள் (2) संकल्पी हिमा (२) श्ररभी हिमा (३) व्यवहारी हिंसा (४) विरोधी हिंसा | मंकल्पी हिंमा-कि.मी प्राणा की संकल्प कर मारने के लिये संकल्पी हिंसा कहा गया है। जैसे आप बैठे हुए हैं और कोई चिउंटी जमीन पर से जा रही है, उसे केवल हिंसक भावना से जान-युककर मार डालना । आरंभी हिंसा - गृहकार्य में स्नान आदि के समय में, भोजन बनाने या घर में झाडू बुहाम देने तथा जल पीने में जो अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा हो जाती है उसे कहा जाता है । व्यवहारी हिंसा व्यवहार में, चलने-फिरने में, जिस प्रकार कीमि होती है, उसे व्यवहारी हिंसा कहने में आता है । विरोधी हिंमा-विरोधी अर्थात् दुश्मनों से आत्मरक्षा करने लिये अथवा किसी श्राततायी से अपने राज्य, देश अथ श कुटुम्बी के रक्षा करने के लिये जा हिंसा करनी पड़ती है, उसे विरोध हिंसा कहते हैं । इसके पश्चात भी अहिंसा के जैनाचार्यों ने और भी भेद किए है। स्थूल हिंमा, सूक्ष्म अहिंसा, द्रष्य अहिंसा. भाव अहिसा देश अहिंसा, सर्व अहिंसा श्रादि । उपरोक्त विभिन्न अहिंसा के भेदों में श्रावक ( गृहस्थ ) के द्वारा आचरणीय तथा साधु-मुनि द्वारा आचरणीय अहिंसा में भी भेद है। इसका विस्तृत विवेचन अन्य किस ग्रन्थ में किया जायगा |

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