Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 25
________________ विश्वधर्म और जैन जो धर्म सामाजिक शान्ति में जितना ही अधिक आत्मिक उन्नति के मार्ग के पति व्यक्ति विशेष को ले जाने की शक्ति रखता है, उतनी ही अधिक मात्रा में वही धर्म विश्वव्यापी धर्मों की श्रेणी में उच्चता की श्रेणी का गिना जाता है। सामाजिक शांति में कौन-कौनसे ऐसे गुगा है, जो बाधक हुआ करते हैं और उनके अतिरिक्त कौन कौन ऐसे गुण हैं, जो उनकी उस प्रकार की शान्ति का बढ़ानेवाले कहे जा सकते हैं। इसी बात की पक्ष करने से हम अपने लक्ष पर पहुंचने में समर्थ हो सकते हैं। धर्मिक दृष्टि से इन बान पर हम पकाश न डालकर कैवल सामाजिक दृष्टि से ही यहा पर कुछ विचार करेंगे | हिसा. क्रूरता. बन्धु विद्रह तथा व्यभिचार आदि कुछ सामाजिक दुगु ऐसे हैं, जिनको हम समाज में अशान्ति पैदा करनेवाले कहे तो अनुचित नहीं कहा जा सकना । उमी के विपरीत धर्म, दया. नम्रता, बन्ध प्रेम तथा ब्रह्मचर्य आदि की शिक्षएँ ऐसी हैं, जिनके प्रस्तार होने से समाज में शान्ति को अटल बनाए रखने में महायता प्राप्त होती है। जिस धर्म के द्वारा पहलेवाने दुगुगों के प्रति हेय दृष्टि तथा दूसरे गुणों के पनि आपूण दृष्टि से देखने का शिक्षा तथा योजना प्राप्त होती हा, उसी धर्म के द्वारा व्यक्ति को, जानि का, देश को तथा विश्व को लाभ होता है।

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