Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 27
________________ (१७ ) प्रत्येक भावक अर्थात् गृहस्थ के लिये अहिंसा, सत्य, पाचार, ब्रह्मचर्य और परिग्रह-परिमाण मादि पॉपअणुव्रतों की योजना करने में पाई है। जैन-धर्म-प्रवर्तक अर्थात जैनाचार्य यह अच्छी तरह से जानते थे कि साधारण मनुष्य प्रकृति इन बातों को सूक्ष्म रूप से पालन करने में असमर्थ होगी। इसी कारण हो उन्होंने मनुष्य-प्रकृति को साधारण गिनी जानेवाली इन्ही बातों को मूक्ष्म रूप से पालन करने को माझा भावकों के लिये देने की कृपा भी की है। जैन धर्म के मनानुमार यदि समाज में समष्टि रूप से उपरोक्त पाँचों धृतों का स्थूल रीति से पालन होने लग जाय और प्रत्येक मनुष्य यदि महिमा के सौंदर्य को, सत्य की पवित्रता को, प्रमचर्य के तेज को तथा सादगी की महत्ता को ममझ जायें, तो इम बान को दावे के माथ स्वीकार करने में आ सकता है कि मनुष्य-ममाज में शान्ति का साव भीम प्रचार, प्रस्तार आदि हुए बिना नहीं रह सकता।। ___ संसार में आज जहाँ भी अशान्ति तथा कलह के जो भी दृश्य आदि देखने को मिलते हैं, उन सभी का मुख्य कारण इन्हीं पांचों वृतों की कमी का होना ही है। अहिंसक प्रवृत्ति के अभाव के कारण संसार में हत्या तथा करता के नग्न दृश्य नित्य देखने को मिला करते हैं। सत्य की कमी ही के कारण ससार में धोखेबाजी नथा बेइमानी भादि नजर पड़ता है, जिसके लिय न्यायालय तथा पञ्चायतों आदि में हजारों-लाखों की संख्या में मुकदमों की पेशियाँ नित्य-प्रति संसार के भिन्न-भिन्न स्थानों पर होनी रहती हैं। उसी प्रकार ही ब्रह्मचर्य के प्रभाव के कारण संसार में अनाचार, व्यभिचार आदि के दृश्य हमें निन्य देखने को मिला करते हैं। साथ ही संसार में सादगी के विरुद्ध

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