Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash Author(s): Bhaiya Bhagwandas Publisher: Bhaiya Bhagwandas View full book textPage 6
________________ ( ख ) ऐमा पल्टा न्याया है कि जो हमारे भाई थे वे भी हमारे न रहे। आज के दो हजार वर्ष पूर्व तक कलिंगाधिपति महागज खारवेल के जमाने में हमारी ममाज की करोड़ों की जन-मग्न्या थी। आज पुरातत्व विभाग हमारी पुगतन मामग्री देखकर हमारी प्राचीनना और मामूहिक शक्तियों का र्गत गाते हुए भी नहीं अघाते कार अाज हम भगवान महावीर की उमी विश्वहिनैपिणी पताका का आश्रय लिए हुए भी अपनी श्रापमा मलीनता और विद्वप भाव से मंमार का प्रांग्बों में खटक रहे हैं। क्या यही भगवान की समस्या धी! जो अाज हमका नीर्थी के झगड़ों में, मूर्तियों कं पूजा में. और ताधिक भाषणों में. पद-पद पर नज़र श्रा रही है ? क्या यही हमाग विश्व बन्धुत्व का नमूना है ? जो अाज हम पादह लाग्य की जन मंग्या में रहकर भी अपना कोई स्थान भाग्न में नहीं रखते। हममें हर तरह से पिछड़ी हुई अन्य समाजें नथा जानियाँ अपनी महट गना और सगठन का म्वाद लेकर अपना हर जगह प्रतिनिधित्व देखना चाहती हैं क्या भगवान न या हमको मिग्याया था ? क्या हमाग यही वत्सल्य है ? जो हमको माक्ष की प्रथम मी नकल जावेगा? जंनबन्धुनी ! माची' और खुब माघी' जो जैन धर्म विश्व धर्म कहलाता था, जिम धर्म की ध्वजा प्राणीमात्र को आश्रय देकर शान्ति और । गटन का पाठ पढ़ाती थी. आज जमी पनाश। श्राश्रय लिए हुए भी हमलोग दिगम्बर जैन, श्वेताम्बर जैन, स्थानकवामी जैन. नंगपंथी जैन आदि नामों से अपने फिरके बनाकर अपनी शनि को व्यर्थ बरबाद कर आज भी व्यापारिक समाज में हमाग नाम और हमारी . धाक है। हमार्ग मैकड़ों मिलें, कल-कारखाने और श्रादानPage Navigation
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