Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ( च ) (७) मोह नींद के जोर. जगवामी घूमै मदा। कर्म चार चटुं ओर. मरबस लूटै सुध नहीं ।। (८) मतगुरु देय जगाय, मोह नोंद जब उपक्षमै । नय कछु बनहिं उपाय. कर्म चीर आवत रुकै।। (१) जान दीप नप तेल घर. घर शोधै भ्रम छोर । गाविध बिन निकम नह', पैट पुरव चोर ।। (१०) पच महावन मचरण, ममिनि पंच परकार । प्रयल पच इन्द्रो विजय, धार निजंग मार ।। चौदह गज उनंग नभ, लोक पुरुष मठान । न: जव अनादि ने. भरमन है बिन ज्ञान ।। ( ) धन का कञ्चन राज मुम्ब. मह सुलभ कर जान दुलभ है संमार में, एक जथाग्थ ज्ञान । आच मुरतरु मुग्य, चितन चिता रैन । बिन जाचे बिन पिनये, धर्म सकल सुन्य दैन ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69