Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash
Author(s): Bhaiya Bhagwandas
Publisher: Bhaiya Bhagwandas

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Page 11
________________ वर्तमान काल और धर्म क्युमहाबो धम्म-जनदर्शन अाज मंमार में धर्म की जो छीछालेदर हो रहा है, वह किमी से भी छिग नहीं है। इस समय में मंमागे मनुष्यों के पृथकरण करने की ही काम यदि धर्म को माने. ना भी अनुचित नहीं होगा हिन्दू में बगाव शैव, मुसलमानों में शीया सुन्नी, जैन में दिगंबर-वतांबा. बौद्धों में हीनयान-महायान. इमाइयों में कैथोलिक-प्रॉटेस्टंट आदि विभिन्न शाग्वा-प्रशान्यानी आदि की बातों को न्याग भाई और उनके मोटे-माटेम्पो तथा भिद्धांतों की दृष्टि में उन्हें देखकर उनपर विचार करें, तो भी हम विश्राम के माथ कह सकते हैं कि मसार के मभी धमाके अनुयायी किमी भी ढङ्ग से अपने अपने धर्म के सिद्धांतों का अनुमरण नहीं करते यही नहीं. उनकी दृष्टियों में ईश्वर, प्रभु, जिन, या भगवान कोई भी नहीं रह गए हैं। उनकी दृष्टिया स्वार्थी दिग्याई देन लग गई है। जिम ममय में संसार में इमप्रकार का वायुमण्डल का प्रवाह चल रहा हो, उम ममय में हम जैन धर्मा वनयी समाज के लिये भी क्या पूर्व निर्मिन शान्य प्रशाम्बाश्री पर हो चिपटा रहना उचित है ? इसी को यहां पर प्रकट करने के लिये कुछ लिया जा रहा है।

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