Book Title: Sankshipta Jain Dharm Prakash Author(s): Bhaiya Bhagwandas Publisher: Bhaiya Bhagwandas View full book textPage 7
________________ ( ग ) प्रदान की बड़ी-बड़ी कोठियाँ भी हैं। पर बनलाइये तो भापके कितने कॉलेज चल रहे हैं. जिनमें भगवान ऋषिभदेव, पार्वनाथ तथा महावीर की दिव्यवाणियो आदि का प्रचार हो रहा है ? आज कितने महाविद्यालय हैं. जो प्रारमा के अनुभव करानेवाले मात तत्त्वों का एक परिभाषा में अध्ययन करा रहे हों। कौनसी ऐमी मोमाइटी है, जो हमाग मामूहिक प्रतिनिधित्व प्राम्तीय असेम्बली या न्द्रो धागमभा में का रही हो ? क्या हमने विश्व के पुननिर्माण में हाथ नहीं बटाया या भारत में उठनेवाले आन्दोलनों में अपनी पूर्ण शक्ति के अनुमार भाग नहीं लिया है ? फिर घनलाइए कि जैन-ममाज का कोनमा प्रतिनिधि हमारे स्वार्थी को रक्षा में गाया है ? एमका मूल कारण प्रापमा मनमुटाव नया अपने जैनधर्म के महान मिढांतों के प्रति हमागे अज्ञानता ही है । जिम धर्म के नाम पर हमाग आपस मे मनमुटाव है. उमी धर्म की परम्बा नया विशेषता आदि को श्राज हम इम ध्यान में अापके करकमलों में मर्पिन कर रहे हैं कि आप इसे पढ़ें, मनन के श्री फिर अनुभव को कि हम क्या श्राज वाम्नर में जनता के प्रतीक है ? यदि हमारे वन्धश्रा ने भगवान की दिव्यवाणी का कुछ भी मार ममझा और परम्पर के मङ्गटन की श्रावस्यकना का उन्होंने कुछ भी अनुभव किया, तो हम ममभंग कि हमाग श्रम कुछ सफल हो गया-जैनधर्म के मुख्य-मुम्य 'वषयों पर विचार करने के साथमाथ इम पुस्तक में जैनधर्म का रग्बाचित्र श्वेताम्बर ममाज के टीम विद्वान विद्यालङ्कार प्राचाय पूज्य श्रीहीगचन्द मूरिजी महाराज काशी और दिगम्बर जैन-ममाज के सुप्रसिद्धविद्वान नथा प्रोफेसर जैन-धर्म, 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय धर्मालङ्कार पं० पन्नालालPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69