Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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परमात्मने नमः
मानव जीवन का महान कर्त्तव्य
सम्यग्दर्शन
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(भाग-5)
Tokelal
धर्मात्मा पीते हैं चैतन्य के आनन्दरस का अमृत
अहो जीवों! चैतन्य का आनन्द-स्वाद और राग का आकुल -स्वाद, इन दोनों को भेदज्ञान द्वारा अत्यन्त भिन्न जानो, भेदज्ञान के बल से सर्व विकल्पों से पृथक् वर्तन ऐसा ज्ञान, वह निर्विकल्प चैतन्यसत्ता अमृत से भरपूर है। अन्तर में भेदज्ञान द्वारा तुम ऐसे चैतन्यरस का पान करो। सच्चा भेदज्ञान और सम्यग्दर्शन होने पर धर्मात्मा को आत्मा के चैतन्य-अमृत का निर्विकल्प स्वाद वेदन में आता है। अहो! वीतरागी सन्तों ने ज्ञान और राग का भेदज्ञान कराकर, आत्मा के निर्विकल्प आनन्दरस का पान कराया है। निर्विकल्प आनन्द ही सच्चा सुधारस है; धर्मात्मा, भेदज्ञानरूपी अंजली द्वारा उस आनन्दरस का पान करते हैं।
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