Book Title: Samboha Panchasiya
Author(s): Gautam Kavi
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 6
________________ एवं दोनों से उत्पन्न होते हैं ऐसे षडज् आदि सात स्वर तूने अपने कानों में भरे हैं। तीन खण्ड से सुशोभित क्षेत्र में जो कुछ उत्पक्ष हुआ है वह सब मेरा ही है इस अभिमान से उत्पन्न हुए मानसिक सुख का भी तूने चिरकाल तक अनुभव किया है । इसप्रकार विषय सम्बन्धी सुख भोगकर भी तू संतुष्ट नहीं हो सका और सम्यग्दर्शन तथा पाँच व्रतों से रहित होने के कारण सप्तम नरक में प्रविष्ट हुआ | वहीं खोलते हुए जल से भरी वैतरणी नामक भयकर नदी में तुझे पापी नारकियों ने घुसाया और तुझे जबरदस्ती स्नान करना पडा | कभी उन नारकियों ने तुझे जिसपर जलती हुई ज्वालाओं से भयंकर उछल-उछलकर बड़ी-बड़ी गोल चहाने पड़ रही थीं ऐसे पर्वत पर दौडाया और तेरा समस्त शरीर टाँकी से छिन्न-भिन्न हो गया । कभी झाड की बालू गर्मी से तेरे आठों अंग जल जाते थे और कभी जलती हुई चिता में गिरा देने से तेरा समस्त शरीर जलकर राख हो जाता था। अत्यन्त प्रचण्ड और तपाये हुए लोहे के घनों की चोट से कभी तेरा चूर्ण किया जाता था तो कभी तलवार जैसे पत्तों से आच्छादित बन में बार - बार घुमाया जाता था । अनेक प्रकार के पक्षी, वनपशु और काल के समाज कुत्तों के द्वारा तू दुःखी किया जाता था तथा परस्पर की मारकाट एवं ताड़ना के द्वारा तुझे पिड़ित किया जाता था। दुष्ट आशय वाले नारकी तुझे बड़ी निर्दयता के साथ अनेक प्रकार के बन्धनमें से बाधते थे और कान होठ तथा नाक आदि काटकर तुझे दुःखी करते थे । पापी जारकी तुझे कभी - कभी अनेक प्रकार के तीक्ष्ण शूलों पर चढा देते थे । इसतरह तूने परतश होकर वहाँ चिरकाल तक बहुत दुःख भोगे । वहाँ तूने प्रलाप, आक्रन्दाज तथा रोना आदि के शब्दों से व्यर्थ ही दिशाओं को व्याप्त कर बड़ी दीनता से शरण की प्रार्थना की परन्तु तुझे कहीं भी शरण नहीं गिली, जिससे तू अत्यन्त दुःखी हुआ । अपनी आयु समाप्त होने पर तू वहाँ से निकलकर सिंह हुआ और वहाँ भी भूख, प्यास, वायु, गर्मी, वर्षा आदि की बाधा से अत्यन्त दुःखी हुआ। वहाँ तू प्राणीहिसा करके मांस का आहार करता था इसलिए क्रूरता के कारण पाप का संचय कर पहले जरक गया । वहाँ से निकलकर फिर तु सिंह हुआ और इस तरह क्रूरता कर महान पाप का अर्जन करता हुआ दुःख के लिए एक उद्यम कर रहा है। अरे पापी ! तेरा अज्ञान बहुत बढ़ा हुआ है, उसी के प्रभाव से तू तत्त्व को नहीं जानता है । इसप्रकार मुनिराज के वचन सुनकर उस सिंह को शीघ्र ही जातिस्मरण हो गया । संसार के भयंकर दुःखों से उत्पन्न हुए भय से

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