Book Title: Sagarmal Jain Abhinandan Granth Author(s): Shreeprakash Pandey Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 9
________________ दूरभाष : 561876 महोपाध्याय विनयसागर निदेशक प्राकृत भारती अकादमी 3826, यति श्यामलालजी का उपाश्रय, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, जयपुर - 302 003 दिनांक.. शुभाशंसा महोदय, मैं और डॉ. सागरमलजी दीर्घकाल से साहित्य सर्जन की विभिन्न योजनाओं में सहयोगी रहे हैं ।परस्पर आत्मीयता व स्नेह की गहराई के कारण उनकी प्रशंसा में कहे मेरे शब्द संभवतः आग्रहपूर्ण अतिशयोक्ति की श्रेणी में डाल दिए जाएंगे । अतः उनसे बचना ही ठीक होगा । __इस स्तर के विद्वान का अभिनन्दन वस्तुतः समाज को ही ऊंचा उठाता है । बार-बार हो तब भी कम है । आयोजक धन्यवाद के पात्र हैं । इस अवसर पर इस मूर्धन्य विद्वान, गहन अध्येता तथा विशिष्ट शैली के रचनाकार की दीर्ध व सक्रिय आयुष्य की कामना करता हूँ, जिससे वर्तमान व भविष्य दोनों लाभान्वित हों । सधन्यवाद भवदीय मि.विनयसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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