Book Title: Sagar Dharmamrut Author(s): Ashadhar Pandit, Lalaram Jain Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 7
________________ पृष्ठ। पंक्ति। भशुद्ध।. . शुद्ध। तन्वन् द्वत तत्त्वन् द्वत जमडे गृहस्थ संध चमडे वैश्य संघ १८६ २ १८९ ४ १९२ १ २०६ १८ २०८ १७ २१७ १५ २२० १९ २२५ २० २२६ १५ २२९ ११ २३१ १६ २३१ १९ २३५ ४ २३६ ११ २४७ २० २४७ २१ २५७ १ अठाईस दृया विषव अठाईस । दया विषय उपवशन धात - तात्कु उसे चिरना स्वरूप स्वरूप रूप त्यागके उपवेशन घात तावत्कु उस चीरना स्वरूप रूप पाप त्यागके समान कुरेला कूरला कर ता .२६३ २१ २६५ १ २६५ १८ कन्यालोक . करे तो कन्यालीक इसी कभी इस । कमी कल्पे दोनों भी २६९ ९ २७१ १७ कल्ये दोनों में ...Page Navigation
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