Book Title: Sagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pandit, Lalaram Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 6
________________ | पृष्ठ। पंक्ति। अशुद्ध । anwr-a- wrimr शुद्ध। झारेसे पुण्य झेरसे पुष्य दपत्योः भावानेक्षिप शुम दंपत्योः भाव निक्षेप शुभ वैसा वैसे १२८ ३ १२८ २. १३३ १६ १४४ १५ १४८ १७ १४८ २० १४९ ९ १५० ५ १५० १५ १५१ १४ १५१ २१ १५२ ३ मोगों भोगों - वैश्या वेश्या रूद्धियों पापका मूखरायां ऋद्धियों बालूका मूषरायां गताः रिंगते उद्गम م ग्रताः रिंगते उद्ग्रम १५३ ६ १५५ १९ १५७ १५ १५८ १ आर्जिका स्त्रियों दुआ श्चेदमभय असावधानी आरंमी दीन मेवार्था अर्जिका स्त्रियां हुआ श्चेदभय असावधानी आरंभी १६० १५ १६४ १६ १६६ १५ १८. ६ १८३ १९ १८५ १४ दोन मेवार्थात् प्रारब्ध पारब्ध

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