Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 07 Uttaradhyayan Niryukti Evam Churni Aagam 43
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 193
________________ आगम (४३) भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [९], मूलं [१...] / गाथा ||२२८-२८९/२२९-२९०, नियुक्ति: [२६०...२७९/२६०-२७९], पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि: प्रत नामदाक्षा सूत्रांक [१] गाथा ||२२८२८९|| श्रीउत्तरागंधारस्सवि उत्तरेण कयं, तस्स य करकंडुस्स आबालप्पभिति सा कंडू अत्थि, तेण कंड्यगं गहाय मसिणं २ कण्णो कंजूइतो, तं तेण एगस्थ संगोवियं, तं दुम्मुहो पेच्छइ, सो भणइ-'जया रज्ज० ॥२७६-३०६॥ सिलोगो कण्ठया, जाव करकंडू पडिवयणं न देति ताव णमी वयणसमकं इमं भणइ-'जया ते पेतिते रज्जे.' ॥२७७-३०६।। गाहा, कि एगस्स तुम आउत्तगोत्ति नमी नग्गनम्यध्यय तिणा भण्णति, ताहे गंधारो भणतिज या सव्वं परिच्चज्ज ॥२७८-३०६॥ गाहा कण्ठया, (ताहे) करकडू भणति-'मुक्खमग्ग-1 ॥१८॥ पवण्णाणं (पवन्नेसु) ॥२७९-३०६।। गाथा कण्ठया, एत्थ पुण णमिणो अधिगारो, जेण गमिपव्यज्जत्ति भण्णति ।। गतो णाम *णिप्फण्णो, सुत्तालावगणिफण्णे सुत्तमुच्चारेतव्वं, तं च इमं सुत्त-'चइऊण देवलोगाओ'।२२८-३०७॥ सिलोगो,चइत्ता-चइऊण | देवानां लोको देवलोकः तस्माद् देवलोकाद, उत्पन्नवान् उत्पन्नः, माणुस्साणं लोगो मणुस्सलोगो. उवसंतमोहणिज्जो दस-| णमोहणिज्ज चरित्रमोहणिज्जं च उवसंतं जस्स सो भवति उपसंतमोहणिज्जो, 'सरति पोराणियं जाई' पोराणजाति अनमि माणुसभवग्गहणे संजमं काऊण पुप्फुत्तरविमाणे आसी तं पुब्बियं । 'जाइं सरितुं भगवं'(१२२९-३०७) सहसा संबुद्धो सहसंबुद्धा, असंगत्तणो समणतणे,स्वयं,नान्येन घोधितः, स्वयंबुद्धः कुत्र अणुत्तरे धम्मे पुत्तं ठवित्तुं रज्जे' पुनाति पिचति वा पुत्रः,अभिनिक्ख||मति स्म अभिनिक्खमति, कश्चासौ , नमी राया, स्थादेतत्, कुत्रावस्थितः कीदृशान् बा भोगान् भुक्त्वा संबुद्धः?, तत उच्यते 4'सो देवलोगसरिसे (२३०-३०७) स इति से नमी, देवानां लोगो देवलोगो तत्सदृशे, अंतेपुरखरगतो, अन्तःपुरम्-उपरोधः वर प्रधान, पहाणे अंतेपुरे, अनन्यसदृशे इत्यर्थः, 'वरे भोगे'त्ति देवलोकसरिसे चेव बरे भोगे भुंजित्तुं णमीराया भीतूण वा, केइ पठति-बुद्धवान् बुद्धः, बुद्धा तु भोगे परिकचयंति, 'महिलं सपुरजणवयं ।। २३१-३०७॥ सिलोगो, मिथिलं णगरं च अनेसि च दीप अनुक्रम [२२९२९०] ॥१८॥ [193]

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