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हमें विचार करना है कि यह क्रोध आता क्यों है? कई लोग कहते हैं कि मैं क्रोध करना नहीं चाहता फिर भी यह क्रोध क्यों आ जाता है ? क्रोध आने के कई कारण बाहरी भी हैं, जैसे
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इच्छापूर्ति में बाधा होना ।
मनचाहा न होना |
मानसिक अस्त-व्यस्तता आदि ।
इच्छापूर्ति में बाधा होना क्रोधोत्पत्ति का पहला कारण है ।
सेठ जी दुकान पर बैठे हुये हैं, गर्मी का मौसम है। सेठ जी ने अपने प्यारे नौकर से कहा- बेटा बिहारी! एक गिलास ठंडा पानी ला, बिहारी फौरन ठंडा पानी ले आया । सेठ जी ने पानी पिया तो सेठ जी बड़े प्रसन्न हुये, 'वाह, बेटा! वाह !' शाबासी दे दी और कहा- तू तो बड़ा अच्छा काम करता है। आधे घंटे बाद सेठ जी ने फिर आवाज दी - अरे, बेटा बिहारी ! एक गिलास पानी और ला, गर्मी बहुत है। बिहारी पुनः पानी लेकर आया । पानी ठंडा था, पर जितना ठंडा पहली बार था, उतना ठंडा इस बार नहीं था । चेहरा थोड़ा-सा बिगड़ा, अब की बार शाबासी नहीं मिली, कुछ कहा भी नहीं । नौकर काम में लग गया। थोड़ी देर बाद फिर आवाज दी- अरे बिहारी! जरा एक गिलास पानी तो और ला । बिहारी काम में उलझा हुआ था, सेठ जी की दुकान का ही कार्य कर रहा था । ध्यान से बात जरा निकल गई । सेठ जी को फिर आवाज देनी पड़ी-अरे बिहारी! पानी ला । और बिहारी गिलास भर करक पानी ले आया । अब की बार पानी लाने में देर भी हो गई और पानी थोड़ा और गर्म हो गया था । सेठ जी ने बेसब्री से गिलास ओंठों से लगाया कि एक घूँट पानी पीते ही सेठ जी की भृकुटियाँ तन गई । गिलास को जमीन पर पटकते हुये बोले कि नालायक कहीं का,
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