________________
हे प्रभु! तीन लोक में जीव भर हैं। हम पाप से, असंयम से मुक्त होने कैसे चलें? कैसे बैठे? कैसे बोलें? कैसे सोयें? कैसे खायं? ताकि पाप कर्म का बन्ध न हो । भगवान के उत्तर को आचार्य बट्टकेर स्वामी ने मूलाचार ग्रन्थ में लिखा है
जदं चरे जदं चिट्टे जदं भासे जदं सये |
जदं भुजज भासेज्ज एवं पावं ण वज्झई ।। भगवान महावीर स्वामी ने कहा-तीन लोक में जीव भरे हैं। उनकी सुरक्षा के भाव अगर तुम्हारे मन में हैं ता यत्न पूर्वक चलो, यत्न पूर्वक बैठो, यत्न पूर्वक उठो, यत्न पूर्वक सोओ, यत्न पूर्वक खाआ, यत्न पूर्वक बोलो जिससे पाप कर्म का बन्ध नहीं होगा। हम लोग होश पूर्वक जीन लगें तो पचास प्रतिशत पाप अपने आप समाप्त हो जायें | इस अत्यन्त दुर्लभता से प्राप्त मनुष्य शरीर का सदुपयोग संयम धारण करने में ही है |
संयम दो प्रकार का होता है -
इन्द्रिय संयम और प्राणी संयम | स्पर्शन, रसना, घ्राण, नत्र, कर्ण और मन पर नियन्त्रण करना इन्द्रिय संयम है, तथा पृथ्वी काय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पति काय, और त्रसकाय के जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है । पाँचों इन्द्रियों क विषय आत्मा के स्वरूप को भुलाने वाले, धर्म से परान्मुख कर दुर्गतियां में ले जाने वाले हैं। सारा संसार इन्द्रियों का दास बना हुआ है। बड़े-बड़े बलवान योद्धा और विचारशील विद्वान भी इन्द्रियों के गुलाम बन हुये हैं। वे अपना अधिकतर समय इन्द्रियों को तृप्त करने में लगाया करत हैं, पर ध्यान रखना य पंचेन्द्रिय क भोग संसार रूपी रोग को बढ़ाने वाल जगत् के शत्रु हैं |