Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 774
________________ ज्ञान का उपयोग सदा करना चाहिये । जो शास्त्र ज्ञान का मनन नहीं करते वे चित्त को रोक नहीं सकते । मनरूपी मदोन्मत्त हाथी को रोकने के लिये ज्ञान ही अंकुश है । ( श्री शिवकाटि आचार्य, भगवती आराधना ) जैसे विधि से प्रयोग किये हुये मंत्र से काला साँप भी शांत हो जाता है वैसे भली प्रकार मनन किये हुए ज्ञान के द्वारा, मनरूपी काला साँप शांत हो जाता है । (श्री शिवकाटि आचार्य, भगवती आराधना ) जिस शुद्ध लेश्या या भावों के धारी के हृदय में सम्यग्ज्ञान रूपी दीपक जलता है। उसको जिनेन्द्र कथित मोक्षमार्ग में चलते हुए कभी भी भ्रष्ट होने का व कुमार्ग में जाने का भय नहीं है । ( श्री शिवकोटि आचार्य, भगवती आराधना ) जो कोई सम्यग्ज्ञान के प्रकाश के बिना मोक्ष मार्ग में जाना चाहता है, वह अंधा होकर अंधकार में अति दुर्गम स्थान में जाना चाहता है । (श्री शिवकोटि आचार्य, भगवती आराधना ) अविद्या या मिथ्याज्ञान के अभ्यास से यह मन अपने वश में न रहकर अवश्य आकुलित होगा, परपदार्थ में रमेगा, वही मन सम्यग्ज्ञान के अभ्यास के बल से स्वयं ही आत्मतत्त्व के रमण में ठहर जायेगा । (श्री पूज्यपाद स्वामी, समाधि शतक) जो कोई व्यवहारनय और निश्चयनय दोनों को जानकर मध्यस्थ हो जाता है, वही शिष्य जिनवाणी के उपदेश का पूर्ण फल पाता है । (श्री अमृतचन्द्र आचार्य, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय) सम्यग्ज्ञानी अपने स्वभाव से ही सर्व रागादि भावों से भिन्न 759

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