Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

View full book text
Previous | Next

Page 776
________________ मानव जन्म का यही सार/ फल है, जो सम्यग्ज्ञान की भावना की जावे और अपने वीर्य को न छिपाकर संयम को धारण किया जावे | (श्री कुलभद्राचार्य, सारसमुच्चय) हे भाई! यदि अपने आत्मा का हित चाहते हो, तो ध्यान तथा स्वाध्याय के द्वारा सदा ही ज्ञान का मनन करो और तप की रक्षा करो। (श्री कुल भद्राचार्य, सारसमुच्चय) वही पुण्यात्मा है, जिसका जन्म गुरु की सेवा करत हुए बीतता है, जिसका मन धर्मध्यान की चिंता में लीन रहता है तथा जिसके शास्त्र का अभ्यास साम्यभाव की प्राप्ति के लिये काम में आता है। (श्री कुलभद्राचार्य, सारसमुच्च्य) भयानक भी काम की दाह आत्मध्यान व स्वाध्याय में ज्ञानोपयोग के बल से नियम से शांत हो जाती है, जैसे मंत्र के पदों से सर्प का विष उतर जाता है। (श्री कुलभद्राचार्य, सारसमुच्चय) वाणी की शुद्धि सत्य वचन से रहती है, मन सम्यग्ज्ञान से शुद्ध रहता है, गुरु सेवा से शरीर शुद्ध रहता है, यह अनादि से शुद्धि का मार्ग है। (श्री कुलभद्राचार्य, सारसमुच्चय) इन्द्रियरूपी मृगों को बांधने के लिय सम्यग्ज्ञान ही दृढ़ फाँसी है, और चित्तरूपी सर्प को वश में करने के लिये सम्यग्ज्ञान ही एक गारुड़ी महामंत्र है। (श्री शुभचन्द्र आचार्य, ज्ञानार्णव) सर्व शास्त्रों के ज्ञाता विद्वान को उचित है कि शुद्ध चैतन्य (761)

Loading...

Page Navigation
1 ... 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802