Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 787
________________ हो सकती, देखी बात भी झूठ हो सकती, पर अनुभव में आयी हुई बात को देखो । कोई एक पुरुष के दो स्त्रियाँ थीं, छोटी स्त्री के तो बालक था और बड़ी के बालक न था, तो उसे ईर्ष्या हुई और अदालत में अपील कर दी कि यह बच्चा तो मेरा है । तो राजा ने उसके न्याय की T तारीख दे दी। इतने में ही उसने उसका न्याय सोच लिया । और पहले से ही सिपाहियों को समझा दिया। अब वे दोनों स्त्रियाँ आयीं, लड़का भी साथ था, तो बड़ी स्त्री कहती है कि यह लड़का मेरा है और छोटी स्त्री कहती है कि यह लड़का मेरा है, तो वहाँ राजा ने यह निर्णय दिया कि इस लड़के के दो टुकड़े बराबर-बराबर कर दो और एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को दे दो। तो सिपाही लोग नंगी तलवार लेकर उस लड़के के दो टुकड़े करने के लिये तैयार हुए कि छोटी स्त्री बोल उठी- महाराज ! यह मेरा लड़का नहीं है, यह इसी का है, इसी को दे दो। और उधर बड़ी स्त्री खुश हो रही थी कि अच्छा न्याय हो रहा है । तो अनुभव ने बता दिया कि जो स्त्री मना कर रही है, उसका है यह बालक, बड़ी स्त्री का नहीं है। तो अनुयोगों की चर्चाओं में हम सर्वत्र लाभ पाते हैं । हमें आर्ष पर आगम पर आस्था होनी चाहिए और सब तरह से हम अभ्यास बनायें तो हम अपने ज्ञान और वैराग्य का संतुलन ठीक रख सकते हैं । व्यवहार धर्म की क्रियाओं से संयम से अपने मन को पवित्र बनाओ, तभी शरीर से भिन्न आत्मा समझ में आती है । केवल 'शरीर भिन्न है, आत्मा भिन्न कहने मात्र से आत्मा के दर्शन नहीं होते । जैसे लोग कह देते हैं कि फूंफ ग्राम या अमुक ग्राम यहीं तो धरा है नाक के सामने । ऐसा बोलते हैं, पर जब चलो, तब पता पड़ता है कि ऐसे जाना पड़ता है । 772

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