Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 796
________________ 3. ने ग्रंथ की रचना की है, उन्होंने अपना ज्ञान पदों की स्थापना में रख दिया है, तब उन्हीं स्थापनारूप पदों के द्वारा वही ज्ञान ग्रहण कर लेना जरूरी है, जो ज्ञान ग्रन्थकर्ताओं द्वारा उनमें भरा गया है या स्थापित किया गया था । ग्रन्थ के यथार्थ भाव को समझना अर्थ शुद्धि है । उभयाचार ग्रन्थ को शुद्ध पढ़ना और शुद्ध अर्थ समझना, दोनों का ध्यान एक साथ रखना उभय शुद्धि है । श्री बट्टकेरस्वामी ने 'मूलाचार' के पंचाचार अधिकार में लिखा है - विजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं । पयदेण य जप्पंतों णाणविसुद्धा हवई एसो ।। जो कोई शास्त्रों के वाक्यों को व शास्त्रों के अर्थ को तथा दोनों को प्रयत्नपूर्वक शुद्ध पढ़ता है, उसी को ज्ञान की शुद्धता होती है । 4. कालाचार - योग्य काल में श्रुत अध्ययन करना । चारों संध्याकाल स्वाध्याय के लिये अकाल माने जाते हैं । संध्याकाल के समय आत्मध्यान तथा सामायिक करना चाहिये । इन कालों के सिवाय दिग्दाह, उलकापात, इन्द्रधनुष, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, तूफान, भूकम्पादि उत्पातों के समय सिद्धांतग्रंथां, अंगपूर्वां का पठनपाठन वर्जित है । स्तोत्र, आराधना, धर्मकथादि ग्रंथों का पठनपाठन वर्जित नहीं है । एक वीरभद्र मुनिराज अर्द्धरात्रि में अकाल में स्वाध्याय कर रहे थे । एक देवी ग्वालिन का वेष लेकर वहाँ छाछ बेचने लगी । मुनिराज ने कहा कि "तू क्या पागल हो गई है? अरे! इस निर्जन वन में और रात्रि में छाछ कौन लेगा?" उसने कहा "मुनिवर ! मुझे तो आप ही पागल दिख रहे हैं, जो अकाल में अध्ययन कर रहे हैं ।" मुनिराज ने अर्धरात्रि के अकाल को 781

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