Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 775
________________ अपने को अनुभव करता है, इसलिये कर्मों के मध्य पड़े रहने पर भी कर्मबंध से नहीं बंधता है। यह आत्मज्ञान की महिमा है। (श्री अमृतचन्द्राचार्य, श्री समयसार कलश) जो कोई परमार्थस्वरूप को बताने वाली, उत्कृष्ट सम्यग्दर्शन को देने-वाली, मोक्षरूपी लक्ष्मी की दूती के समान अनुपम जिनवाणी को पढ़ते हैं, सुनते हैं व उस पर रुचि करते हैं, ऐसे सज्जन इन कषायों के दोषां से मलीन लोक में दुर्लभ हैं-कठिनता से मिलते हैं, और जो उस जिनवाणी के अनुसार आचरण करने की उत्तम बुद्धि करते हैं, उनकी बात क्या कही जाव? वे ता महान दुर्लभ हैं । ऐसी परोपकारिणी जिनवाणी को समझकर उसके अनुसार यथाशक्ति चलना हमारा कर्तव्य है। (श्री अमितिगति महाराज, तत्त्वभावना) जिस पुरुष की मति स्याद्वादरूपी जल के भरे समुद्र में स्नान करने से धोई गई है-निर्मल हो गई है, वही शुद्ध व मुक्त आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जानता है, तथा वह उसी स्वरूप को ग्रहण करने योग्य साक्षात् मानता है | व्यवहार से सिद्ध में व संसारी में भेद किया हुआ है। यदि निश्चय से इस भेद को दूर कर दिया जावे, तो जो सिद्ध स्वरूप है वही इस अपने आत्मा का स्वभाव है, उसी का ही अनुभव करना योग्य है। (श्री पद्मनंदि मुनि, सिद्ध स्तुति) यह मानव दीर्घकाल से लगातार मोहरूपी निद्रा स सो रहा है। अब तो उसे अध्यात्म-शास्त्र को जानना चाहिय और आत्मज्ञान को जागृत करना चाहिये। (श्री पद्मनंदि मुनि, सद्बोध चन्द्रोदय) (760

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